Pic- Rohit Jain |
ये कहानियाॅं जामसिंह पिता मटला ग्राम लखनकोट, सुरबान ग्राम ककराना, शकर तड़वला, आलीराजपुर, मुकेश डुडवे बड़वानी आदि लोगों से पूछ कर संकलित की गई हैं। युवानिया पत्रिका व आधारशिला शिक्षण केन्द्र द्वारा आदिवासी संस्कृति को समझने के लिये लोक कथाएॅं व किंवदंतियाॅं एकत्रित की जा रही हैं।
भंग्रिया शब्द कहाॅं से आया होगा? इस शब्द व इस मेले/हाट को लेकर अनेक प्रकार की भ्राॅंतियाॅं हैं। अधिकतर आदिवासियों को भी नहीं मालूम कि इस का अर्थ क्या है। शहर के लोग इस शब्द को लेकर गलत सलत
बातें प्रचारित करते हैं। Yuवानिया ने इसका सही अर्थ और उत्पत्ति जानने की कोषिष की है। इसके लिये हमने बड़वानी, आलीराजपुर और झाबुआ जि़लों के अनेक लोगों से पूछा।
यह काम अभी अधूरा है लेकिन अबतक की जानकारियों को आप से बाॅंटने के लिये यहाॅं लिख रहे हैं।
बारेली, पावरी, भीलाली भाषा के भंग्रिया शब्द को हिन्दी भाषी, शहर व अखबार वालों नें भगोरिया बना दिया है और वे इसका संधि विच्छेद करके बताते हैं कि भगोरिया मतलब भगा के ले जाने वाला मेला। इस तरह के अर्थ निकाल कर वे प्रचारित करते हैं कि आदिवासियों में यह प्रथा है कि इस मेले में युवक युवतियों को भगा कर ले जाते हैं। कुछ बाहरी लोग इसे आदिवासियों का स्वयंवर तक कहने लगे हैं। भॅंग्रिया भील, भीलाला, बारेला व पावरा आदिवासियों का एक प्रमुख मेला है। आदिवासी बहुल पष्चिम मध्यप्रदेष, पूर्वी गुजरात व उत्तर महाराष्ट्र के झाबुआ, धार, बड़वानी, खरगोन, आलीराजपुर, छोटा उदयपुर, नन्दुरबार जिलों में यह मेला होली के पूर्व सप्ताह में हर हाट बाजार में भरता है।
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इसकी उत्पत्ती की अनेक कहानियाॅं अलग अलग इलाकों में प्रचलित हैं।
झाबुआ जि़ले की एक कहानी के अनुसार भगोर गाॅंव से यह नाम पड़ा। कहते हैं कि झाबुआ के पास भगोर गाॅंव में एक राजा रहता था। एक बार राजा का नौकर, राजा की लड़की को लेकर भाग गया। राजा ने उन्हे बहुत ढॅंूढा पर वे नहीं मिले। उन्हे पकड़ने के लिये राजा ने मेला भरने की तरकीब सोची। राजा ने सोचा कि मेला देखने के लिये वे दोनो ज़रूर आयेगें तब उन्हें पकड़ लेंगे। इस तरह भंग्रिया मेले की षुरूआत हुई।
इसी तरह की कहानी धार जि़ले के डही गांव में भी सुनी गई।
एक अन्य कहानी के अनुसार झाबुआ के नजदीक के भगोर गाॅंव में भगु नामक राजा का राज्याभिषेक समारोह किया गया था। तबसे हर वर्ष मेला भरने की परम्परा की षुरूआत हो गई जो आज तक भंग्रिया के रूप में जारी है। झाबुआ जि़ले में आज भी भगोर उप जाति का भील समुदाय निवास करता है।
बड़वानी व आलीराजपुर के बारेला व भीलाला समाज की होली संबंधी लोक कथाओं में भंग्रिया नाम के एक पात्र का वर्णन है। लोगों से बात करने पर पता चलता है कि भंग्रिया दलित समाज का लड़का है। ये कहानियाॅं व गीत, आदिवासियों और दलित जातियों के प्राचीन संबंधों की ओर भी इंगित करते हैं।
आलीराजपुर की कहानी का कुछ अंष -
.........सोनान डांडू ने आखा सामान गाड़ी मां भर लेदी। हूवी काजे कोयो कि पूनम पर आपणो काजे मथवाड़ देवतान घर राणीकाजल ने कॅंूदू राणा ने डोंगरिया घर पूगणो छे। गाड़ी मामार हाक कौरीन कौहली।
भंग्रिया काजे मालूम हतो के होलका तोरणमाल हाट करने गयली छे। च्यू वाट मा ढोल, बाजा घुघरा ने पावली लींन नाच-कूद करने बाज गयलो। तोरणमाल मां गाड़ी चालू कौरी ने भंगरियू गाल पर कवास लागाड़ीन ने गुलाल लिन गाड़ी अगल फिर वलयू। ने हूवीन् पावर ने होलकान् डूला मां गुलाल नाखिन उड़ावी देदलू। गाड़ी मां एक सोनान साड़ी ने खाणेन थूड़क सामान होता - खान काकड़ी, खारिया, सकरिया -ये लूट लेदलू। सोनान डांडू नी हाकलाईलो।
इस कहानी में बताया गया है ......
........ सोने का डण्डा और सारा सामान गाड़ी में भर लिया। होली ने कहा कि पूनम पर हमें मथवाड़ देवताओं के घर, राणीकाजल, कुंदू राणा व डोंगरिया के घर पहॅुंचना है। गाड़ी जल्दी गेर।
भंग्रिया को मालूम था कि हूवी बाई तोरणमाल हाट करने गई है। वो रास्ते में ढोल, बाजे, घुंघरू, बाॅंसुरी लेकर नाच कूद करने लगा। तोरणमाल से गाड़ी चालू हुई और जब रास्ते पर आई तो भंगोरिया मुॅंह पर कालिक पोत कर और हाथ में गुलाल लेकर गाड़ी के आगे आ गया। हूवी बाई और उसके नौकर की आॅंखों में गुलाल फेंक दिया। गाड़ी में रखी, एक सोने की साड़ी और खाने का थोड़ा सामान - खजूर, सेव, शक्करकंदी आदि - भंग्रिया ने लूट लिया। सोने का डण्डा बहुत भारी था, उससे नहीं उठा।......हुवु बाई (होली) की पूरी कहानी को यहाँ पढ़ा जा सकता है.
अलग अलग इलाकों में ऐसी अनेक कहानियाॅं हैं। लखनकोट गाॅंव की एक कहानी में बताया गया है कि सुमना नायक की लड़की ने दरिया में मेला लगाया। मेले में आये लोग नाच नहीं रहे थे। उन सभी लोगों को सुमना नायक की लड़की मारने लगी जिससे लोगों में उछल - कुद होने लगी। और जब साथ में ढोल बजाया तो यह उछल कूद नाच में बदल गई।
4 comments :
Babut achha lekh... 😃
Babut achha lekh... 😃
thanks suresh. tumne jo geet ekatrit kiye hain unhe bhejo unhe bhi chhaapenge.
बहुत सुंदर, सामयिक जानकारी। इसे जारी रखो। संभव हो तो छापा भी जा सकता है। ---राकेश दीवान।
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