सुरबान पिता लालसिंह भिलाला , कामत फलिया, ग्राम ककराना, जि़ला आलीराजपुर, से सुनकर, केमत गवले ने लिखी।
जैसे मैने सुनी है..जितनी मुझे याद है। भूल चूक माफ़ करना।
स्वर्ग में इसका मायका। बाप का नाम कालीपला भूरिया बाण। माॅं, बाण काली पलास। हुवू बाई बहुत दुःख में थी। खाना नहीं मिलता था। कपड़े नहीं थे। माॅं बाप नें सोच लिया था कि यह लड़की ठीक नहीं है। किस्मत वाली नहीं है। इसलिये माता पिता ने ठीक से नहीं पाला। उसकी शादी नहीं हो रही थी। वो गुगलपुर बाज़ार जाती थी पेट भरने के लिये कुछ धंधा करने।
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और आगे गई तो कौव्वी चिल्ला दी। और थोड़ी आगे गई तो साॅंप ने रास्ता रोक दिया। साॅंप को देखते हुए जब एक तरफ़ से चल रही थी तो पैर में ठोकर लग गई। ये सब देख कर उसे बहुत बुरा लगा और डर भी लगा। सिर पर हाथ रख कर बैठ गई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
रेत में बैठकर रो रही थी। समुद्र किनारे सोना सोवली नाम की बड़ी चील एक पेड़ पर बैठी थी। सवली घूवड हुवूबाई के पास आई और उसे अपने पंखों से घेर कर बैठ गई। हुवूबाई से पूछा, तुझे क्या तकलीफ़ है? क्यों रो रही है ?
हुवू बाई ने अपनी तकलीफ़ बताई तो सवली घूवड़ ने कहा चल मैं तुझे मैं भगवान के घर ले जाती हॅूं और उसे वो समुद्र किनारे कुरी भगवान के घर ले गई। कुरी भगवान सवल्ली घूवड़ का रखवाला है। माॅं कहो, बाप कहो, सब कुछ वही है। कुरी भगवान ने हुवीबाइ्र्र को नहलवाया धुलवाया और अच्छी तरह खिलाया-पिलाया और कहा बेटी तुझे अच्छी जगह पर पहुॅंचाकर किसी अच्छे काम में लगा देंगे।
सब इंसानों की किसमत लिखने वाली लेखारी जोखारी हैं। तेरी किसमत लेखारी जोखारी ने कैसी लिखी है। लेखारी जोखारी का लिखा हुआ समुद्र में रहने वाला आंदलू बामण पढ़ सकता है। तेरा नाम गलत है या किसमत खराब है, वही पढ़ कर बतायेगा।
कौरी भगवान ने उसके नौकर बांडिया तूरीखण्ड को बुलाया जो सारे खण्डों में खबर देता था। बांडया तूरीखण्ड को आंदलू बामण के पास भेजा। आंदलू बामण सारी किताबों की गादी पर सो रहा था। देवता का घोड़ा तेज़ी आया और हाॅंफ़ता हुआ रूका। उसकी आवाज़ सुन कर आंदलू बामण चैंक कर उठा और गोफ़ण लेकर तैयार हो गया। उसे लगा कोई दरिया से पानी चुराने आया है। उसने अपने साथी पांगले को आवाज़ लगाई और देखने को कहा कि कौन आया है। पांगला पहचान गया कि यह तो कौरी भगवान का नौकर है।
बांडिया तूरीखण्ड घोड़े से नीचे उतरा। एक दूसरे से खैरियत पूछी। फिर बांडिया ने कहा कि तुमसे बहुत ज़रूरी काम है। तुम्हारी ये किताबें लो और मेरे साथ लेखारी जोखारी के पास चलो। पांगला घोड़े पर बैठ नहीं सकता था इसलिये उसे एक थैली में घोड़े के एक तरफ़ लटकाया और दूसरी तरफ़ एक और थैले में लेखारी जुखारी की किताबें भर कर लटका दीं। साथ में आंदला को बैठाया और भगवान के पास ले आया।
भगवान के घर पहॅुंचे तो भगवान ने खाना बनाकर रखा था। आंदला और पांगला को खिलाया। आंधला बामण की गादी उसके साथ में थी। वो गादी लगाकर बैठ गया। कौरी भगवान ने आंधला से कहा कि इस बच्ची के माॅं बाप नहीं हैं। बताओ इसका नाम और इसकी जन्म तारीख क्या है ?
आंदला बामण ने लड़की का नाम ढॅूंढा और कहा कि इसका नाम तो हुवूबाई है। पूर्णिमा के दिन इसका जन्म हुआ है। किसमत ठीक भी है और खराब भी। कपड़ा लत्ता सब सोने का मिलने वाला है इसे। कौरी भगवान ने सोचा कि तब तो सुनार के घर जाना पड़ेगा और इसके सोने के कपड़े बनवाने पड़ेंगे।
हुवूबाई ने पूछा कि मुझे बाज़ार जाते में साॅंप ने रोक लिया - इसका क्या अर्थ होगा? तू गूगलपुर बाज़ार जा। सब ठीक हो जायेगा। वहाॅं पर सुनार की गली में जाकर पूछना, वहाॅं तुझे सब चीज़ें मिल जायेंगी। जा बेट जा। कहकर कौरी भगवान ने उसे भेज दिया। आंदला और पांगला को वापिस समुद्र किनारे भेज दिया।
गूगलपुर में सुनार की गली में जाकर हुवूबाई ने पूछा कि सोने की साड़ी कहाॅं मिलेगी ? सुनार ने कहा कि यह साड़ी तो बनानी पड़ेगी। तुम बैठो मैं अभी बना देता हॅूं। सुनार ने सोने का एक टुकड़ा गला कर, नाप हुवूबाई का नाप लेकर एक साड़ी बना दी।
सुनार ने साड़ी बना दी और पूछा और क्या चाहिये ? हुवूबाई ने कहा कि एक सोने का डण्डा और एक सोने की झग बना देना। बाद में बोली कि मुझे धूप में कम दिखाई देता है तो मेरे लिये सोने की आॅंखें भी बना देना। सुनार ने सोने की आॅंखें भी बना दीं।
सोने की साड़ी, सोने का डण्डा और सोने की झज लेकर तोरणमाल पहॅुंची। तोरणमाल पर भूंई राजा बैठा था। भूंई राजा के पास जाकर हुवूबाई ने कहा कि मुझे भोजन चाहिये। भूंई राजा ने पूछा कि कैसा भोजन चाहिये ? हुवूबाई ने कहा कि देवताओं को खिलाने के लिये और मनुष्यों को खिलाने के लिये भोजन चाहिये। इस पर भूंई राजा ने कहा कि आंधाखूई व सीताखूई में महादेव-गौरा मो मालूम है कि क्या क्या भोजन चाहिये। भोजन के मालिक महादेव गौरा हैं।
वहाॅं से हुवूबाई महादेव गौरा के पास आंधाखूई में गई। महादेव गौरा ने उससे पूछा कि तुझे किस किस को खिलाने के लिये भोजन चाहिये ? हुवूबाई ने कहा कि पहले देवताओं को खिलाने के लिये सामान दे दे। गौरा ने नारियल, षक्कर के कंगन, खजूर, काकड़ी, दाली और मांजूण दे दिया।
फिर हुवूबाई ने कहा कि अब मनुष्यों के खाने की चीज़े दे दे। धरती के लोगों के लिये बुकडि़या चांतिया व सेंवई दी। सारा सामान बाॅंध लिया पर उठा नहीं पा रही थी। भूंई राजा ने कहा कि बेटी तेरे लिये मैं एक गाड़ी बनवा देता हॅंू। फिर उसने बढ़ई के घर जाकर गाड़ी बनवाई। टेमरू और आक की लकड़ी से गाड़ी का धूरा और किल्ली बनवाई।
हुवूबाई को लेजाने के लिये झगलिया भूत को साथ में भेजा। सामान गाड़ी में भर दिया फिर झगलिया बैल जोड़ी और बैलों को जूपने का सामान ढूॅंढने गया तो उसे बैल नहीं मिले। फिर बैल मिले तो झगलिया से जुपा नहीं रहे थे। हुवूबाई रोने लगी।
रोना सुनकर दो मुॅंहे साॅंप ने कहा कि मैं बैलों के उपर रखने वाली लकड़ी बन जाउॅंगा। कोरफड़ ने कहा कि मैं इस लकड़ी से बैलों को बाॅंधने वाली रस्सी बन जाउॅंगा। हुवूबाई का रोना सुनकर धरती में से दीवड़ और लांडिया निकले और कहा हम बैल की नात और मुरखी बन जायेंगे।
जैसे ही गाड़ी चलाई, गाड़ी टूट गई। फिर हुवूबाई रोने लगी तो अजगर ने आकर गाड़ी फिर से जोड़ दी। गाड़ी तैयार हो गई। सोने का डण्डा और सारा सामान गाड़ी में भर दिया। झगलिया भूत से कहा कि पूनम पर अपने को मथवाड़ में राणीकाजल, कुंदू राणा और डोंगरिया - इन देवताओं के घर पहॅुंचना है। जल्दी गाड़ी हाक।
भंग्रिया को मालूम था कि हूवी बाई तोरणमाल हाट करने गई है। वो रास्ते में ढोल, बाजे, घुंघरू, बाॅंसुरी लेकर नाच कूद करने लगा। तोरणमाल से गाड़ी चालू हुई और जब रास्ते पर आई तो भंगोरिया मुॅंह पर कालिक पोत कर और हाथ में गुलाल लेकर गाड़ी के आगे आ गया। हूवी बाई और उसके नौकर की आॅंखों में गुलाल फेंक दिया। गाड़ी में रखी, एक सोने की साड़ी और खाने का थोड़ा सामान - खजूर, सेव, शक्करकंदी आदि - भंग्रिया ने लूट लिया। सोने का डण्डा बहुत भारी था, उससे नहीं उठा।...
Boodla. Pic.- C.Mishra |
Palash flowers |
हुवूबाई के सामान में से डोंगरिया ने सोने का डण्डा माॅंग लिया। उसकी सोने की आॅंखंे भी माॅंग लीं। हुवू बाई ने पूछा कि अब मैं धरती के मनुष्यों के लिये क्या ले जाउॅंगी ? डोंगरिया ने पलाष के फूलों से उसकी आॅंखें बना दीं। सोने के डण्डे के बदले सागवान और बाॅंस का डण्डा दे दिया। बाद में उसकी योनी छीन ली और उसके बदले सेमल का डोंडा लगा दिया।
Rani Kajal Mathwad |
संग्रहकर्ता - केमत गवले। टंकन - अमित
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